शिक्षक कर रहे बाबू का कार्य, शिक्षक बिना कक्षाएँ हो रहीं वीरान — प्रशासनिक बोझ से पढ़ाई चौपटगैर-शैक्षणिक आदेशों, रैलियों, चुनावी ड्यूटी और ऑनलाइन कार्यों में उलझे गुरुजन; पढ़ाई से भटक रही पूरी पीढ़ी

घरघोड़ा/रायगढ़। शिक्षकों ने शासन-प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाया है कि लगातार गैर-शैक्षणिक गतिविधियों और आदेशों की अधिकता ने उन्हें पढ़ाई से दूर कर दिया है। स्थिति यह है कि स्कूलों में कक्षाएँ वीरान पड़ी रहती हैं और शिक्षक प्रशासनिक कार्यों में “बाबू” की भूमिका निभाने को विवश हैं।
*गैर-शैक्षणिक जिम्मेदारियों का ढेर* :
शिक्षकों का कहना है कि उन्हें लगातार ऐसे कार्य सौंपे जा रहे हैं, जिनका शिक्षा से कोई सीधा संबंध नहीं है।
• रैली, बैठक और विभिन्न अभियानों की तैयारी
• वृक्षारोपण कर फोटो-वीडियो जियोटैग करना
• गुरु पूर्णिमा, तिरंगा अभियान, गौ-रक्षा परीक्षा और प्रयास परीक्षा जैसी गतिविधियाँ
• अब हाल ही में शिक्षा विभाग ने “एलुमिनाई मीट” कराने का आदेश भी जारी कर दिया है, जिससे शिक्षकों पर और अतिरिक्त दबाव बढ़ गया है।
*ऑनलाइन और ऑफलाइन कार्यों का दबाव* :
शिक्षकों का दावा है कि पढ़ाई से अधिक समय ऑनलाइन-ऑफलाइन रिपोर्टिंग और डेटा एंट्री में खर्च हो रहा है।
• करीब 35-40% समय मोबाइल ऐप्स व पोर्टलों पर डाटा अपलोड, उपस्थिति अपडेट और ऑनलाइन प्रशिक्षण में चला जाता है।
• 20-25% समय मीटिंग्स, निरीक्षण और रजिस्टर संधारण जैसे ऑफलाइन कार्यों में खर्च होता है।
• शेष समय में ही बच्चों को पढ़ाने की कोशिश होती है, लेकिन तब तक पढ़ाई का प्रवाह टूट जाता है।
*चुनावी ड्यूटी सबसे बड़ी चुनौती* :
चुनाव के समय हालात और बिगड़ जाते हैं। शिक्षकों का कहना है कि निर्वाचन कार्यों और प्रशिक्षण में महीनों तक व्यस्त रहने के कारण पढ़ाई लगभग ठप हो जाती है। एक शिक्षक ने बताया कि “पिछले लोकसभा चुनाव में लगभग तीन महीने तक नियमित कक्षाएँ प्रभावित रहीं। इसका खामियाजा बच्चों को भुगतना पड़ा।
*शिक्षा की गुणवत्ता पर संकट* :
शिक्षकों का कहना है कि एक आदेश खत्म होते ही तुरंत नया आदेश थमा दिया जाता है। लगातार गैर-शैक्षणिक कार्यों का दबाव उनके मूल कर्तव्य — विद्यार्थियों को पढ़ाना — पर सीधा असर डाल रहा है। यदि यह स्थिति जारी रही तो शिक्षा की गुणवत्ता में भारी गिरावट आएगी और आने वाली पीढ़ी का भविष्य खतरे में पड़ जाएगा।
👉 शिक्षकों ने समाज और समाचार माध्यमों से अपील की है कि इस समस्या को प्रमुखता से उठाया जाए, ताकि शासन-प्रशासन सचेत हो और शिक्षा व्यवस्था को प्रशासनिक बोझ से मुक्त किया जा सके।